नशा हे ख़राब : झन पीहू शराब


"न्यूज ब्लॉग में आपका स्वागत है" ..... जल है तो कल है "....." नशा हे ख़राब : झन पीहू शराब " ..... - अशोक बजाज
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मंगलवार, 23 सितंबर 2014

भारतीय संस्कृति का मौलिक चित्रण है एकात्म मानववाद

                                                                                                                    
असाधारण व्यक्तित्व के धनी पं. दीनदयाल उपाध्याय एक महान देशभक्त, कुशल संगठनकर्ता, मौलिक विचारक, दूरदर्शी, राजनीतिज्ञ ,पत्रकार और प्रबुद्ध साहित्यकार थे. आजादी के बाद देश की दशा पर उन्होंने गहन चिंतन किया तथा पूंजीवाद, साम्यवाद और समाजवाद के मुकाबले एकात्म मानववाद का दर्शन प्रस्तुत किया. एकात्म मानववाद में भारतीय संस्कृति का मौलिक चित्रण है , भारतीय संस्कृति का दृष्टिकोण एकात्मवादी होने के कारण ही वह  सम्पूर्ण जीवन तथा सम्पूर्ण सृष्टि का संकलित विचार करती है. टुकड़ों-टुकड़ों में विचार करना विशेषज्ञों की दृष्टि से उचित हो सकता है, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से उपयुक्त नहीं.  अग्रेजी शासन की दासता से मुक्ति पाने के बाद हमारी प्राथमिकता आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता होनी चाहिए थी लेकिन दुर्भाग्य से देशवाशियों को इसकी आत्मानुभूति नहीं हुई. संस्कृति हमारे देश की आत्मा है तथा वह सदैव गतिमान रहती है. इसकी सार्थकता तभी है जब देश की जनता को उसकी आत्मानुभूति हो. देश को किस मार्ग पर चलना चाहिए इस पर चिंतकों में मतभेद था कुछ अर्थवादी ,कुछ राजनीतिवादी तथा कुछ मतवादी दृष्टिकोण के थे , इनमें से अलग हट कर पं. दीनदयाल उपाध्याय ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर जोर दिया उन्होनें कहा कि संस्कृति-प्रधान जीवन की विशेषता यह है कि इसमें जीवन के मौलिक तत्वों पर तो जोर दिया जाता है पर शेष बाह्य बातों के संबंध में प्रत्येक को स्वतंत्रता रहती है. इसके अनुसार व्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रत्येक क्षेत्र में विकास होता है. संस्कृति किसी काल विशेष अथवा व्यक्ति विशेष के बन्धन से जकड़ी हुई नहीं है, अपितु यह तो स्वतंत्र एवं विकासशील जीवन की मौलिक प्रवृत्ति है. इस संस्कृति को ही हमारे देश में धर्म कहा गया है. जब हम कहतें है कि भारतवर्ष धर्म-प्रधान देश है तो इसका अर्थ मज़हब, मत या रिलीजन नहीं, अपितु यह संस्कृति ही है.

अंग्रेजी शासन काल में सबका लक्ष्य एक था ”स्वराज” लाना लेकिन स्वराज के बाद हमारा रूप क्या होगा ? हम किस दिशा में आगे बढे़गे ? इस बात पर ज्यादा विचार ही नहीं हुआ.  पं. दीनदयाल उपाध्याय ने 1964 में कहा था कि हमें ”स्व” का विचार करने की आवश्यकता है. बिना उसके ”स्वराज्य” का कोई अर्थ नहीं.  स्वतन्त्रता हमारे विकास और सुख का साधन नहीं बन सकती। जब तक हमें अपनी असलियत का पता नहीं तब तक हमें अपनी शक्तियों का ज्ञान नहीं हो सकता और न उनका विकास ही संभव है. परतंत्रता में समाज का ”स्व”दब जाता है.  इसीलिए राष्ट्र स्वराज्य की कामना करता हैं जिससे वे अपनी प्रकृति और गुणधर्म के अनुसार प्रयत्न करते हुए सुख की अनुभूति कर सकें. प्रकृति बलवती होती है, उसके प्रतिकुल काम करने से अथवा उसकी ओर दुर्लक्ष्य करने से नाना प्रकार के कष्ट होते हैं. प्रकृति का उन्नयन कर उसे संस्कृति बनाया जा सकता है, पर उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती. आधुनिक मनोविज्ञान बताता है कि किस प्रकार मानव-प्रकृति एवं भावों की अवहेलना से व्यक्ति के जीवन में अनेक रोग पैदा हो जाते हैं, ऐसा व्यक्ति प्रायः उदासीन एवं अनमना रहता है. उसकी कर्म-शक्ति या तो क्षीण हो जाती है अथवा विकृत होकर वि-पथगामिनी बन जाती है. व्यक्ति के समान राष्ट्र भी प्रकृति के प्रतिकूल चलने पर अनेक प्रकार की व्याधियों का शिकार हो जाता है, आज भारत की अनेक समस्याओं का मूल कारण यही है.

 पं. दीनदयाल उपाध्याय ने मानव शरीर को आधार बना कर राष्ट्र के समग्र विकास की परिकल्पना की. उन्होनें कहा कि मानव के चार प्रत्यय है पहला मानव का शरीर , दूसरा मानव का मन , तीसरा मानव की बुद्धि और चौथा मानव की आत्मा. ये चारोँ पुष्ट होंगें तभी मानव का समग्र विकास माना जायेगा. इनमें से किसी एक में थोड़ी भी गड़बड़ है तो मनुष्य का विकास अधूरा है. जैसे यदि किसी के शरीर में कष्ट हो और उसे 56 भोग दिया जाय तो उसकी खाने में रूचि नहीं होगी. यदि कोई व्यक्ति बहुत ही स्वादिस्ट भोजन कर रहा है उसी समय यदि कोई अप्रिय समाचार मिल जाय तो उसका मन खिन्न हो जायेगा. भोजन तो समाचार मिलने के पूर्व जैसा स्वादिस्ट था अब भी वैसा ही स्वादिस्ट है लेकिन अप्रिय समाचार से व्यक्ति का मन खिन्न हो गया इसीलिये उसके लिए भोजन क्लिष्ट हो गया. यानी भोजन करते वक्त “आत्मा” को जो सुख मिल रहा था वह मन के दुखी होने से समाप्त हो गया. पं. दीनदयाल जी ने कहा कि मनुष्य का शरीर,मन, बुद्धि और आत्मा ये चारोँ ठीक रहेंगे तभी मनुष्य को चरम सुख और वैभव की प्राप्ति हो सकती है. 

जब किसी मनुष्य के शरीर के किसी अंग में कांटा चुभता है तो मन को कष्ट होता है , बुद्धि हाथ को कांटा निकालने के लिए निर्देशित करती है और हाथ चुभे हुए स्थान पर पल भर में पहुँच जाता है और कांटें को निकालने की चेष्टा करता है. यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. सामान्यतः मनुष्य शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा इन चारोँ की चिंता करता है. मानव की इसी स्वाभाविक प्रवृति को पं. दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद की संज्ञा दी. उन्होंने मनुष्य की इस प्रवृति को राष्ट्र के परिपेक्ष्य प्रतिपादित करते हुए कहा कि राष्ट्र की स्वाभाविक प्रवृति ही उसकी संस्कृति है. उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा को समझना है तो उसे राजनीति अथवा अर्थ-नीति के चश्मे से न देखकर सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही देखना होगा. भारतीयता की अभिव्यक्ति राजनीति के द्वारा न होकर उसकी संस्कृति के द्वारा ही होगी. विश्व को यदि हम कुछ सिखा सकते हैं तो उसे अपनी सांस्कृतिक सहिष्णुता एवं कर्त्तव्य-प्रधान जीवन की भावना की ही शिक्षा दे सकते हैं. राजनीति अथवा अर्थनीति शायद हमको उनसे ही उल्टे कुछ सीखना पड़े.  पं. उपाध्याय ने कहा कि अर्थ, काम और मोक्ष के विपरीत धर्म की प्रमुख भावना ने भोग के स्थान पर त्याग, अधिकार के स्थान पर कर्त्तव्य तथा संकुचित असहिष्णुता के स्थान पर विशाल एकात्मता प्रकट की है. इसी भावना के साथ हम विश्व में गौरव के साथ खड़े हो सकते हैं. 

                                                                          लेखक - अशोक बजाज , पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत रायपुर 

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

तरंगों को किसी देश की सीमा से नहीं बांधा जा सकता

श्रोता दिवस पर अखिल भारतीय श्रोता सम्मलेन व प्रदर्शनी का आयोजन
(LISTENERS DAY , 20 August)


सम्मलेन को संबोधित करते हुए 
रेडियो श्रोता दिवस के अवसर पर भाटापारा में 20 अगस्त को अखिल भारतीय श्रोता सम्मलेन एवं प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. यह सम्मलेन भाटापारा के अग्रसेन भवन में हुआ. जिसमें देश भर के लगभग 300 श्रोताओं ने भाग लिया. कार्यक्रम में पुराने फिल्मों के एलबम, प्राचीन वाद्य यंत्रो, देश भर में पाए जाने वाले पत्थरों, पुराने सिक्कों एवं पिछले कार्यक्रमों के तस्वीरों की नयनाभिराम प्रदर्शनी भी लगाई गई. गीत- संगीत का भी रोचक कार्यक्रम हुआ तथा पुराने फ़िल्मी गीतों के संग्रह की सी.डी. का विमोचन किया गया. कार्यक्रम के दौरान रायपुर से पधारी श्रीमती आशा जैन ने सर्वाईकल कैंसर एवं आहार विषय पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रतिभागियों को प्रदान की.   

आयोजक मंडल ने छत्तीसगढ़ लिसनर्स क्लब के संयोजक के नाते मुझे मुख्य अतिथि बनाया था, जबकि अध्यक्षता विधायक श्री शिवरतन शर्मा ने की. कार्यक्रम में विविध भारती मुंबई के एनाउन्सर श्री कमल शर्मा एवं श्री राजेंद्र त्रिपाठी के अलावा आकाशवाणी बिलासपुर तथा अम्बीकापुर के एनाउन्सर व कम्पीयर विशेष रूप से उपस्थित थे. 

मुख्य अतिथि के नाते अंत में मुझे अंत में बोलने का अवसर दिया गया. मैनें श्रोता बंधुओं एवं बहनों से कहा कि संचार क्रांति के इस युग में रेडियो की महत्ता आज भी कायम है विशेषकर भारत जैसे विकासशील देश में रेडियो आज भी प्रासंगिक है. मैनें विभिन्न देशों के रेडियो स्टेशनों द्वारा चलाये जा रहे हिन्दी सर्विस का जिक्र करते हुए कहा कि लोग भले ही अपने अपने देश की सीमाओं से बंधें हो लेकिन तरंगों को किसी देश की सीमा से नहीं बांधा जा सकता. आज दुनिया में संचार के अनेक साधन विकसित हो चुके है परन्तु उसमें फूहड़ता व अश्लीलता ज्यादा होती है, यही वजह है कि आज समाज में नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है. टेलीविजन के कार्यक्रमों को हम भले ही परिवार सहित बैठकर नहीं देख सकते हो लेकिन रेडियों के कार्यक्रमों को हम परिवार सहित बैठकर सुन सकते है. यहाँ पर भाटापारा के श्रोताओं की प्रशंसा करना आवश्यक था क्योंकि यहाँ के श्रोताओं की सजगता, सक्रियता व जागरुकता के कारण इस शहर की कीर्ति चारों तरफ फैली हुई है. 

उल्लेखनीय तथ्य यह है कि छत्तीसगढ़ से प्रारंभ हुई श्रोता दिवस मनाने की परंपरा अब पूरे देश में शुरु हो चुकी है. लिसनर्स-डे मनाने की परंपरा की शुरुवात वर्ष 2008 में छत्तीसगढ़ के श्रोताओं ने की थी तथा देश भर के श्रोताओ से 20 अगस्त को यह पर्व मनाने की अपील की थी. फलस्वरूप यह पर्व अब देश के अधिकांश हिस्सों में मनाया जा रहा है. ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से श्रोताओं में जाग्रति आ रही है. 

सम्मलेन में आकाशवाणी के एनाउन्सर श्रीमती संज्ञा टंडन, श्री हरिश्चन्द्र वाद्यकार, श्री महेंद्र साहू, लौकेश गुप्त, श्री आर. चिपरे के अलावा रेडियो के वरिष्ठ श्रोता श्री परसराम साहू, श्री हरमिंदर सिंह चावला, श्री बचकामल, श्री रतन जैन, श्री कमलकांत गुप्ता, श्री सुरेश सरवैय्या, श्री विनोद वंडलकर, श्री कमल थवानी, श्री सोहन जोशी, श्री प्रदीप जैन, श्री खरारी राम देवांगन, श्री सुनील मिश्रा, श्री माधव मिरी, श्री रेखचंद मल, श्री आर.सी.कामड़े, श्री ईश्वरीसाहू, श्री दिनेश वर्मा, श्री धरमदास वाधवानी, श्री पी.एस. वर्मा, श्री दुर्गाप्रसाद साहू, श्री प्रदीप चन्द्र, श्री भागवत वर्मा, श्री संतोष वैष्णव, श्री मोतीलाल यादव, श्री मोहन देवांगन, श्री अनिल ताम्रकार कटनी, श्री अखिलेश तिवारी जबलपुर, श्री महेंद्र सिंह कुरुक्षेत्र हरियाणा, श्री प्रकाश हिन्गोले नागपुर, श्री हनुमान दास साहू यवतमाल, श्री रामजी दुबे पश्चिम बंगाल, श्री चंद्रेश गौहर इंदौर, श्री  बलवंत वर्मा प्रमिलागंज मध्यप्रदेश प्रमुख रूप से उपस्थित थे. 

                               सम्मलेन की झलकियाँ 

संबोधन 

सी.डी. का विमोचन 

दीप प्रज्ज्वलन 

स्वागत 

पत्थरों की प्रदर्शनी 

फोटो व प्राचीन वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी

प्राचीन वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी

फोटो प्रदर्शनी

पुराने फिल्मों के पोस्टर 

श्रोता गण 

श्रोता गण

श्रोता गण

श्रोता गण

श्रोता गण

श्रोता गण

          कार्यक्रम से संबंधित प्रकाशित समाचारों की कतरनें                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        

दैनिक भास्कर रायपुर, 22.08.2014

दैनिक देशबंधु रायपुर, 22.08.2014

दैनिक हरिभूमि रायपुर, 22.08.2014

दैनिक नईदुनिया रायपुर, 22.08.2014

दैनिक तरुण छत्तीसगढ़ रायपुर, 22.08.2014

दैनिक नवभारत रायपुर, 21.08.2014

आलेख / दैनिक नवभारत रायपुर, 21.08.2014

रविवार, 16 मार्च 2014

"होली" की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

सभी ब्लॉगर बहनों व भाइयों

 को 

रंग पर्व
 
"होली"
 
की 

हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

                                     आपका - अशोक बजाज