नशा हे ख़राब : झन पीहू शराब


"न्यूज ब्लॉग में आपका स्वागत है" ..... जल है तो कल है "....." नशा हे ख़राब : झन पीहू शराब " ..... - अशोक बजाज
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शुक्रवार, 20 मई 2011

बिना एंपायर का मैच और डबल सेंचुरी

ये ब्लागिंग है कोई वन डे मैच नहीं जो एक दिन चले और ख़त्म हो जाये , ब्लागिंग एक ऐसा मैच है जो रोज चलता है . यह पूरे 365 दिन चौबीसों घंटे चलने वाला मैच है .यह टेस्ट मैच भी नहीं जो कुछ दिनों तक चले फिर अवकाश हो जाये .अब तो क्रिकेट में 20-20 ( ट्वेंटी-ट्वेंटी )  का  जमाना आ गया है जो सीमित ओव्हरों का होता है तथा आधे दिन में समाप्त हो जाता है . दूसरी  ओर ब्लागिंग में ना कोई अवकाश होता है और ना ही कोई गेप होता है . यह निरंतर चलने वाला काम है जिसमें कभी एंड नहीं होता . सन्डे-मंडे की बात तो छोडिये होली , दिवाली और दशहरा का भी अवकाश नहीं होता बल्कि ऐसे बड़े त्योहारों में माउस और ज्यादा दौड़ने लगता  है . अब होली को ही ले लें , बाकी लोगों को जैसे जैसे इसका रंग चढ़ता है वैसे वैसे ब्लागर का मन रंगीन पोस्ट लिखने के लिए मचलता है , दिवाली की रात में  अनारदाने जैसे जैसे अन्धकार को ललकारते है वैसे वैसे की-बोर्ड पर ब्लागर की उंगलियों  का रफ़्तार भी बढ़ते जाता है .
 
बहरहाल यह ग्राम-चौपाल का 200 वां पोस्ट है , क्रिकेट की भाषा में इसे दोहरा शतक (DOUBLE CENTURY ) कह सकते है . हमने अपना पहला पोस्ट 22 मई 2010 को लगाया था  लेकिन हम इस काम में 01 जुलाई 2010 से सक्रिय हुए . मेरा प्रयास तो यही रहता है कि प्रतिदिन एक नया पोस्ट लगे लेकिन जब घर से बाहर रहता हूँ तब पोस्ट लगाना संभव नहीं होता है .डबल सेंचुरी बनाने में लगभग एक वर्ष लग गए .

ब्लागिग के पिच पर अनेक धुरंधर है  जो बरसों से क्रीज पर जमे हुए है और चौंकों-छक्कों की बदौलत   लगातार शतक पर शतक बनाये जा रहें है  . इसके चारों और फिल्डर फैले हुए है जो हर गेंद को टिप्पणी रूपी हथेली से  लपकने को तैयार बैठे रहते है . बालिंग करने वाले धुरंधरों की भी यहाँ कोई कमी नहीं , यहाँ आल राउंडर भी आपको बहुत भारी संख्या में मिलेंगे जो कभी लेख रूपी तेज  बाल फेंकतें है  तो कभी कविता रूपी गुगली .इसमें गूगल और आरकूट जैसे दर्शक भी है जो ब्लागरों का हौसला अफजाई करते रहते है.यहाँ चर्चा मंच , ब्लाग-चौपाल , छत्तीसगढ़ ब्लागर्स चौपाल  ,
ब्लाग4वार्ता   जैसे विकेट-कीपर भी है जो पल-पल! हरपल!! पोस्ट लगते ही लपक लेते है यानी गेंद बल्ले से लगी नहीं कि विकेट कीपर ने लपक लिया . सब कुछ तो है  पर बेचारा एंपायर ( चिट्ठा-जगत )  आजकल  गायब है , जिसकी वजह से कई ब्लागर पवेलियन लौट चुके है  .एंपायर के नहीं रहने से ना कोई नंबरिग  हो पा रही है  और ना ही अनुशासन नाम की चीज यहाँ रह गई है .जिसके मन में जैसा आये बिना हिचक के लिख रहे है क्योकि नो-बाल या वाइड बाल का ईशारा करने  वाला यहाँ कोई नहीं  . बिना निर्णायक के मैच चल रहा है .अत: जरुरत है स्व - अनुशासन की पर इस कलयुग में  स्व - अनुशासन आये  भी तो कैसे ?

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