हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी पहली विदेश-यात्रा थी .
भारत की सीमा से लगा नेपाल एक हिंदू राष्ट्र है. यहां की आबादी लगभग 3 करोड़ है, जिसमें से 81 प्रतिशत लोग हिन्दू है.हिन्दुओं का इतना अधिक प्रतिशत भारत में भी नहीं है. हिंदू और बौद्ध संस्कृतियों का अनूठा संगम भी नेपाल में दिखाई देता है. यहां की संस्कृति व भारत की संस्कृति में अनेक मूलभूत समानताएं है, पड़ोसी देश होने के कारण नेपाल और भारत के बीच काफी सांमजस्य है. दोनों देशों की नागरिकता भले ही अलग अलग है लेकिन लोगों के आने-जाने के लिए वीजा, पासर्पोट की जरूरत नही है.नेपाल का उत्तरी हिस्सा हिमालय पर्वतमाला से घिरा हुआ है. विश्व की दस सबसे ऊँची चोटियों में से आठ नेपाल में है. दुनिया की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट भी यहीं है .समुद्री सतह से 8848 मीटर यानी 29029 फीट ऊँचीं इस चोटी को स्थानीय लोग "सागरमाथा" कहते हैं,यह नेपाल और चीन की सीमा पर स्थित है . इसके साथ ही यहाँ 20000 फीट तक की ऊँचाई वाली 240 चोटियाँ है.हिमालय की गोद में बसा नेपाल अपनी प्राचीन संस्कृति के लिए जाना जाता है और अपनी प्राकृतिक सुन्दरता की वजह से यह पर्यटकों की पसंदीदा जगह है.नेपाल पर्यटन के लिए पर्वतारोही कमाई का एक महत्वपूर्ण जरिया है. माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए नेपाल सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है . यह कृषि प्रधान देश है. यहां की मुख्य फसल धान व मक्का है ; पर यह भी सच है कि नेपाल दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में से एक है.नेपाल की राजधानी काठमांडू है. काठमांडू उपत्यका के अन्दर ललीतपुर (पाटन), भक्तपुर, मध्यपुर और किर्तीपुर नाम के नगर भी हैं अन्य प्रमुख नगरों में पोखरा, विराटनगर, धरान, भरतपुर, वीरगञ्ज, महेन्द्रनगर, बुटवल, हेटौडा, भैरहवा, जनकपुर, नेपालगञ्ज, वीरेन्द्रनगर, त्रिभुवननगर आदि है. नेपाल 14 अंचल (प्रान्त ) और 75 जिलों में विभाजित है .
राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ( National Institute of Cooperative Banking Management & Training Bangalore NICBMT ) के तत्वाधान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सहकारी सेमीनार में भारत से जाने वाले प्रतिभागियों को 9 जुलाई को दोपहर 12.00 बजे दिल्ली के इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से काठमांडू के लिए रवाना होना था, सो सुबह 10.00 बजे मैं दिल्ली एयरपोर्ट पंहुंच गया था . मेरे साथ अपेक्स बैंक रायपुर के एक अन्य संचालक श्री मिथिलेश कुमार दुबे भी थे .एयरपोर्ट के पोर्च में राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर की डायरेक्टर श्रीमती जी. शमन्ना और प्रोग्राम अधिकारी श्री गिरीश कुमार मिले. उन्होंने हमें एक ओर बैठने का इशारा किया , जहाँ मध्यप्रदेश, केरल, आंध्रपदेश, कर्नाटक, पंजाब, महाराष्ट्र, गोवा और राजस्थान के प्रतिभागी वहां पहले से मौजूद थे.छत्तीसगढ़ से हम केवल दो थे . उन सबसे थोड़ा-बहुत परिचय हुआ. उसी समय बोर्डिंग और सुरक्षा जांच के लिए जाने का संकेत हुआ. चूंकि नेपाल एक मित्र राष्ट्र है इसीलिए वहॉं जाने के लिए वीजा व पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती है. लगभग सभी लोग भारत निर्वाचन आयोग का वोटर आई.डी. लेकर आये थे. प्रतिभागियों की संख्या लगभग 60 थी. सारी प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद हम सब 11.30 बजे विमान में बैठे. ठीक दोपहर 12.00 बजे किंगफिशर के विमान ने अन्तर्राष्ट्रीय विमान तल दिल्ली से काठमांडू के लिए उड़ान भरी.
ठीक 1.30 बजे हमारा विमान काठमांडू में लैंड कर चुका था . एयरपोर्ट के बाहर निकलने से पूर्व काफी चेकिंग हुई , चूँकि हम सब ग्रुप में थे इसलिए सबको चेकिंग में एक घंटा लग गया . हम लोगों को होटल तक ले जाने के लिए एयरपोर्ट के बाहर दो बसें खड़ी थी . अधिकांश लोग बस में बैठ गए जबकि कुछ लोग एयरपोर्ट में ही नेपाल की करेंसी और वहां की कंपनी के मोबाईल का सिम-कार्ड लेने लगे. अंततः हम लोग दोपहर 3 बजे होटल पहुंचे , हम सबके ठहरने के लिए काठमांडू के होटल एवरेस्ट में व्यवस्था की गयी थी.किसी ने दोपहर का भोजन नहीं किया था , तकरीबन सभी लोग भूखे थे . होटल के कमरे में सामान रखकर सभी ने लगभग 4.00 बजे भोजन किया. भोजन करके मै दुबेजी के साथ बाहर बाजार की रौनक देखने निकल गया . एक पान की दूकान में पान खाया , फिर अगली दूकान में जाकर NCELL कंपनी का सिम-कार्ड लिया . दूकानदार से इन्डियन और नेपाली करेंसी के बारे में जानकारी ली . भारत का रूपया वहां आसानी से चलता है . भारत की करेंसी का मूल्य नेपाली करेंसी से ज्यादा है यानी भारत के सौ रुपये का मूल्य नेपाल के एक सौ साठ रुपये के बराबर है ; छोटे छोटे दूकानदार भी दोनों देशों के करेंसी के मूल्य के अंतर को आसानी से समझते है तथा प्रायः दोनों करेंसी में अपनी वस्तु का मूल्य बताते है . वे हिंदी अच्छी तरह समझते है तथा बोलते भी है . बोलने की अदा और लय में कहीं कोई अंतर नहीं है . हम दोनों काफी देर तक बाजार में घूमते रहे तथा लोगों से बात कर अपनी जिज्ञाषा शांत करते रहे . चूँकि शाम 6 बजे सेमिनार का शुभारंभ होना था अतः हम दोनों समय पर होटल के कांफ्रेंस हॉल में पहुँच गए .
होटल एवरेस्ट के कांफ्रेस हॉल में ठीक 6.00 बजे सेमीनार प्रारंभ हुआ. कार्यक्रम संचालक ने मुझे मुख्य अतिथि की हैसियत से मंच पर आमंत्रित किया . मंच पर मेरे अलावा जैसलमेर राजस्थान के श्री पूरन सिंह भाटी, केरल के श्री राजप्पन नायर, गोवा की श्रीमती प्रतिभा गौरीश धोंड , नागपुर महाराष्ट्र के श्री चंद्रशेखर राहटे ,NICBMT की डायरेक्टर श्रीमती जी.शामन्ना बैठे . सबसे पहले दीप प्रज्जवल्लित कर सेमीनार का विधिवत उदघाटन किया .सभा कक्ष में छत्तीसगढ़ ,मध्यप्रदेश, केरल, आंध्रप्रदेश , कर्नाटक, पंजाब, महाराष्ट्र, गोवा और राजस्थान के प्रतिनिधि मौजूद थे.सम्मलेन का विषय था -- Challeges Before Cooperative Credit System . सबसे पहले मैंने उपस्थित प्रतिनिधियों का हार्दिक अभिनन्दन किया तत्पश्चात छत्तीसगढ़ में सहकारिता की स्थिति को केंद्र बिन्दु बना कर मैंने अपने भाषण की शुरुवात की .
मैंने सेमीनार में कहा कि छत्तीसगढ़ पहला राज्य है, जहां सहकारिता से जुड़े किसानों को तीन प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण प्रदान किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ सरकार फसल ऋण देने वाली प्राथमिक साख सहकारी समितियों को ऋण सबसीडी प्रदान करती है. वैसे मध्यप्रदेश सरकार ने इस साल से एक प्रतिशत ब्याज दर निर्धारित किया है, जो कि भारत के किसी भी राज्य की तुलना में सबसे कम है. मैंने कहा कि सरकार चाहे तो पूरे देश में शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण उपलब्ध करा सकती है. बहरहाल छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में ब्याज दर कम होने से प्राथमिक सहकारी साख समितियों के प्रति आम किसानों का आकर्षण बढ़ा है. आज जिस प्रकार से ऋण सुविधा आसान कर व्यावसायिक बैंकों द्वारा किसानों को आकर्षित किया जा रहा हैं. इससे सहकारी समितियों का व्यवसाय खत्म हो रहा था, लेकिन ब्याज दर कम करने से सहकारी समितियों का काम तेजी से बढ़ा हैं.
मैंने अपने उद्बोधन में छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की प्रक्रिया की जानकारी देते हुए कहा कि राज्य की मुख्य फसल धान है .न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी का काम प्राथमिक सहकारी साख समितियां करती है .समितियों द्वारा ख़रीदे गए धान के संग्रहण का काम राज्य सहकारी विपणन संघ यानी मार्कफेड करती है . प्रदेश में नागरिक आपूर्ति निगम है जो संग्रहित धान का मिलिंग करा कर चांवल को राज्य भंडारगृह निगम के गोदामों में भंडारित करती है तथा आवश्यकतानुसार गोदामों से वितरण केन्द्रों तक पहुँचाती है . सार्वजनिक वितरण प्रणाली के खाद्यान का वितरण महिला स्व-सहायता समूह , ग्राम पंचायत और प्राथमिक सहकारी साख समितियां करती हैं . छत्तीसगढ़ में बी.पी.एल. कार्डधारियों को 2 रु. प्रति किलो की दर से प्रतिमाह ३५ किलो चांवल प्रदान किया जाताहै.अति गरीब परिवार को 1 रु.प्रति किलो की दर से प्रतिमाह ३५ किलो चांवल प्रदान किया जाताहै. देश भर में राज्य के पी.डी.एस. सिस्टम की सराहना हो रही है.सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्य के पी.डी.एस. सिस्टम की सराहना करते हुए इस सिस्टम को देश भर में लागू करने का निर्देश योजना आयोग को दिया है.
मैंने देश भर में सहकारी अधिनियम में एकरूपता लाने की सलाह दी, जिसे सभी का समर्थन प्राप्त हुआ। इस अवसर पर मैंने अन्य सदस्यों की चिंता से सदन को अवगत कराते हुए कहा कि सहकारी क्षेत्र में सरकार का कम से कम हस्तक्षेप होना चाहिए. आज जिस प्रकार से सहकारी समितियों व संस्थाओं पर सरकार द्वारा शिकंजा कसा जा रहा है, उससे सहकारी आंदोलन की स्वायत्तता व स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. लोकसभा में जो विधेयक लाया गया है, उससे सहकारी समितियों पर सरकार का सीधा हस्तक्षेप हो जाएगा. इससे सहकारिता की पवित्र भावना को ठेस पहुँच रही है .
सदन में भारत के छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, आंध्रपदेश, कर्नाटक, राजस्थान एवं पंजाब प्रांत के डेलीगेट्स मौजूद थे. सबने उपरोक्त बिन्दुओं पर करतल ध्वनि से अपनी सहमति दी.अन्य वक्ताओं ने दो-दो, तीन-तीन मिनट में अपनी बात रखी. इस प्रकार इस अन्तर्राष्ट्रीय सहकारी सेमीनार का उद्घाटन सत्र सम्पन्न हुआ.
दूसरे दिन यानी 10 जुलाई को सुबह से ही काठमांडू शहर घूमने का प्रोग्राम बना . सो सुबह 8.00 बजे दो बसों में भरकर हम लोग सबसे पहले पशुपतिनाथ मंदिर का दर्शन करने निकले . दोनों बसों में अलग-अलग गाईड की व्यवस्था की गई थी . गाईड ने हमें बताया कि काठमांडू का पशुपतिनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल तो नही है, लेकिन जिस प्रकार अमरनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल नही होने के बावजूद उसका दर्शन महत्वपूर्ण है उसी प्रकार पशुपतिनाथ का दर्शन महत्वपूर्ण है . पशुपतिनाथ मंदिर पहुँचने के पूर्व एक श्रीगणेशजी का मंदिर है , हम सबने गणेशजी के दर्शन किये . पशुपतिनाथ मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही जानकारी मिली कि मंदिर के अन्दर केवल हिन्दू ही प्रवेश कर सकते है अन्य नहीं ; मंदिर के अन्दर कैमरा ले जाना भी मना है . हमें दर्शन करने में एक घंटे लग गए . मंदिर परिसर के बाहर प्रसाद एवं अन्य सामानों की दूकानें सजी थी . जहाँ रुद्राक्ष एवं उसकी मालाएं मिल रही थी. सबने कुछ ना कुछ ख़रीदा और आगे बढ़ गए .
पशुपतिनाथ का दर्शन कर हम लोग बौद्धस्तूप गयें तथा स्तूप की पूरी परिक्रमा की . यहाँ पर बौद्ध भिक्षुओं की काफी भीड़ देखने को मिली . दोपहर का समय था , धूप काफी तेज थी . सुबह जल्दी-जल्दी हल्का पुल्का नाश्ता करके निकले थे अतः सबको भूख सता रही थी . स्तूप के बाहर मुख्य मार्ग में पहुंचे तो फूटपाथ में कुछ देर खड़े होकर बस का इंतजार करना पड़ा. फूटपाथ में एक दुबला-पतला वयोवृद्ध बैठा था.उसके हाथ में सिगरेट व माचिस देख कर मजाक सूझी . उसने आग्रह करने पर सिगरेट सुलगाई और चुस्कियां भरते हुए पोज देने लगा. फोटो खिचाते समय वह बड़ा खुश हो रहा था . मेरे पूछने पर उसने अपना नाम भी बताया लेकिन मैं उसका नाम भूल रहा हॅूं.
अब स्वयंभूनाथ के दर्शन की बारी थी , अतः सभी ने होटल पहुँच कर जल्दी जल्दी भोजन किया फिर निकल पड़े स्वयंभू नाथ का दर्शन करने . वैसे तो काठमांडू शहर पहाड़ में बसा है लेकिन स्वयंभूनाथ काठमांडू से और ऊपर पहाडी पर स्थित है . मंदिर से एक फर्लांग पहले बस खड़ी हुई , आगे चढाई थी तथा पैदल ही जा सकते थे सो पैदल चलते चलते पूरा काठमांडू शहर देख रहे थे . मौसम भी हल्की बदली छाये होने के कारण सुहावना हो गया था . एक पहाडी में हम थे सामने अन्य पहाड़िया थी . पहाड़ियों के बीच में पूरा काठमांडू शहर और वहां की हरियाली दृष्टिगोचर हो रही थी . स्वयंभूनाथ परिसर के एक कमरे में भजन कीर्तन की आवाज सुनाई दी , सभी बारी बारी से अन्दर गए वहां अनेक बौद्ध संप्रदाय के भक्तजन कतारबद्ध बैठकर पाठ कर रहे थे , सबको प्रणाम कर तथा मंदिर का दर्शन कर हम सब नीचे उतारे और पुनः बस में बैठ कर पुराने राजमहल में पहुँच गए .
राजमहल का नजारा तो और भी अदभूत था.इसे देखकर मन काफी प्रसन्नचित् हो गया. दीवारों को छोड़कर पूरा राजमहल काठ (लकड़ी) से बना है. अब समझ आया कि इस शहर का नाम काठमांडू क्यों पड़ा . छत के छज्जे के सहयोग (सपोर्ट) के लिए जो लकड़ियॉं लगी है, उसे भी देवी-देवताओं का स्वरूप दिया गया है . वहॉं पर बजरंग बली, गणेश जी की मूर्तियां भी स्थापित है. कृष्ण भगवान का मंदिर अलग से है. सभी ने घूम-घूम कर अपने अपने कैमरे में इस दृश्य को कैद किया . लगभग सभी के हाथ में कैमरा था, जिसके पास कैमरा नही था उन्होने मोबाईल से फोटो खींचा. यहाँ पर फोटो ग्रुपिंग भी हुई.
यहॉं से सबको हैण्डी क्राफ्ट जाना था, बस एक बाजार के पास घूमकर आई. बस का इंतजार करते एक बाजार में रूके जहां फल-सब्जियां बिक रही थी. सब्जियों का प्रकार और भाव जानकर भारत की तुलना करने लगे. ककड़ियों का आकार बहुत ही बड़ा था. कुछ ही देर में अपनी बस आ गई , वहां से बस में बैठ कर हम सब हैंडी क्राफ्ट की बाजार में पहुँच गए एकाध दूकान खुली थी जहाँ कालीन, ऊनी कपड़े तथा महिलाओं के श्रृंगार का सामान बिक रहा था .स्वभाविक रूप से महिला प्रतिनिधियों ने अपने श्रृंगार के सामान खरीदे . हम लोग तो केवल बाजार - भाव की जानकारी लेते रहे . एक कालीन का भाव हमने पूछा तो सेल्समेन ने नेपाली करेंसी में 1 लाख 60 हजार रूपये बताया तो सब आश्चर्यचकित हो गए . कालीन का साईंज मुश्किल से 4‘×4‘ रहा होगा.
यहॉं से सबको हैण्डी क्राफ्ट जाना था, बस एक बाजार के पास घूमकर आई. बस का इंतजार करते एक बाजार में रूके जहां फल-सब्जियां बिक रही थी. सब्जियों का प्रकार और भाव जानकर भारत की तुलना करने लगे. ककड़ियों का आकार बहुत ही बड़ा था. कुछ ही देर में अपनी बस आ गई , वहां से बस में बैठ कर हम सब हैंडी क्राफ्ट की बाजार में पहुँच गए एकाध दूकान खुली थी जहाँ कालीन, ऊनी कपड़े तथा महिलाओं के श्रृंगार का सामान बिक रहा था .स्वभाविक रूप से महिला प्रतिनिधियों ने अपने श्रृंगार के सामान खरीदे . हम लोग तो केवल बाजार - भाव की जानकारी लेते रहे . एक कालीन का भाव हमने पूछा तो सेल्समेन ने नेपाली करेंसी में 1 लाख 60 हजार रूपये बताया तो सब आश्चर्यचकित हो गए . कालीन का साईंज मुश्किल से 4‘×4‘ रहा होगा.
वहॉं से वापस होटल एवरेस्ट के कांफ्रेंस हॉल में पहुंचे जहां नेशनल कोआपरेटिव्ह फेडरेशन नेपाल के चेयरमेन और वाईस चेयरमैन ने नेपाल की सहकारिता पर प्रेजेन्टेशन प्रस्तुत किया. सेमीनार में जानकारी दी गई कि नेपाल कृषि प्रधान देश है तथा यहां 22646 प्राथमिक समितियां, 204 सेकेण्डरी यानी जिला स्तर की समितियां , 1 कोआपरेटिव्ह बैंक तथा 1 नेशनल फेडरेशन है. नेपाल में सहकारिता का जन्म 1956 में हुआ तथा 1963 में बैंक अस्तित्व में आया.1967 में एग्रीकल्चर डेवलपमेंट बैंक (ए.डी.बी.) प्रारंभ हुआ. सभा सोसाइटी एक्ट 1984 में बना तथा 1992 में नया एक्ट बना जिसके अन्तर्गत सहकारिता का कामकाज संचालित हो रहा है.नेपाल में सहकारिता विभाग के अलावा राष्ट्रीय सहकारी बोर्ड (National Cooperative Development Board ) भी है. नेशनल को-आपरेटिव्ह फेडरेशन नेपाल भारत के इफको और राष्ट्रीय सहकारी संघ दिल्ली के अलावा जापान, मलेशिया एवं श्रीलंका की अनेक संस्थाओं का भी मेम्बर है.
हमने देखा कि नेपाल की राजधानी काठमांडू में सहकारी बैंकों का जाल बिछा हुआ है. सड़कों पर घूमते हुये जगह जगह हमें सहकारी बचत व ऋण समितियों के सैकड़ों बोर्ड दिखाई दिये.हमारे होटल के ठीक बांयी ओर एक तीन मंजिले भवन में कृषि विकास बैंक स्थित था.राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष ने बताया कि नेपाल के लगभग 3 मिलियन लोग सहकारी क्षेत्र से सीधे जुड़े है.
11 जुलाई 2011 को मनोकामना देवी के दर्शन का कार्यक्रम बना. आचार्य एकादशी होने के कारण कुछ लोगों का उपवास था . सारे प्रतिनिधि सुबह 8 बजे दो बसों में रवाना हुये. काठमांडू से कुछ दूर जाने के बाद बागमती नदी दिखाई दी. नदी के किनारे-किनारे मार्ग बना है. काफी घुमावदार रास्ता है, मनकामना की दूरी काठमांडू से लगभग 125 कि.मी. है लेकिन वहां पहुंचने में हमें चार-साढ़े चार घंटे लग गये. रास्ते भर हरे-भरे पेड़ पौधों से घिरे पहाड़ियों को निहारते रहे. ऐसा लग रहा था मानो पूरा नेपाल देश पहाड़ों में बसा है. हमें कहीं भी सघन बस्ती दृष्टिगोचर नही हुई. पहाड़ी की ऊंचाइयों में दूर-दूर तक एक एक, दो-दो घर दृष्टिगोचर हुये. पहाड़ी के बीच बीच में छोटे छोटे खेत बनाये गये है, 100-200 वर्ग फीट के भी खेत दिखाई दिये. जहां जगह मिली लोगों ने थोड़ा समतल कर खेत बना लिया है. वहां के किसान कहीं कहीं धान की कटाई कर रहे थे तो कहीं धान की रोपाई . यानी धान की कटाई और रोपाई का काम साथ-साथ चल रहा था. कुछ खेतों में भुट्टे के पौधे भी दिखाई दिये. भुट्टे के पौधों की ऊंचाई 4-5 फीट की हो गई थी.पहाड़ी की ऊपरी सतह से निकलने वाले झरने के पानी को छोटी-छोटी नालियां बनाकर खेतों में सिचाई की व्यवस्था की गई है. बाघमती नदी में अच्छा खासा पानी था लगता है, पिछले 24 घंटे में इस इलाके में बारिश हुई होगी .
बस यात्रा बड़ी अविस्मरनीय रही . मै जिस बस में बैठा था उसमें मध्यप्रदेश , पंजाब , गोवा और महाराष्ट्र के लोग बैठे थे . महाराष्ट्र और गोवा के महिला पुरुष सदस्यों की संख्या लगभग 20 रही होगी . सबने गीत संगीत शुरू कर दिया . अंताक्षरी भी हुई ," तुतक तुतक तुतियां .........." से लेकर " मेरे देश की धरती सोना उगले .........." जैसे गीत सुनने को मिला . कुछ कलाकार भी थे जिन्होंने अनेक पुराने नगमें सुनाये .रास्ता कटता गया , लगभग 10 बजे एक पड़ाव आया अतः चाय पीने के लिए रुके . ताईवानी टूरिस्ट वहां पहले से मौजूद थे , यहाँ पर ताईवानी टूरिस्टों के साथ संयुक्त फोटोग्राफी भी हुई . इन्डियन भी खुश ,ताईवानी भी खुश . लगभग 12.30 बजे मनकामना मंदिर के पास पहुंचे . बस से उतरने के बाद बताया गया कि लगभग 2000मीटर की उचाई चढ़ने के बाद ही मनकामना देवी के दर्शन हो पायेगा . ऊपर जाने के लिए रोपवे की सुविधा है , अतः ट्राली यानी केबल कार की टिकिट लेकर बारी बारी से हम सब ऊपर गए . एक ही रोपवे में 50 से अधिक ट्रालियां चलते देख कर मन आनंदित हो उठा . यहाँ का रोपवे अत्यंत ही आधुनिक तकनीक से बना है . ट्राली में बैठ कर नदी , पहाड़ और बस्ती का दृश्य बड़ा सुहावना लग रहा था . कुछ मिनट में हम पहाडी के ऊपर पहुँच गए . वहां मनकामना देवी का दर्शन कर हमने एक मारवाड़ी भोजनालय में भोजन किया सो नीचे आने में हमें कुछ विलंब हो गया . लगभग दोपहर 2 बजे नीचे उतरे तो भूख और धूप से व्याकुल बाकी सहयात्री हमारी प्रतिक्छा कर रहे थे , विलंब से पहुँचने की काफी प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई . दरअसल लंच का आर्डर कहीं और दिया गया था जो वहां से करीबन 10 कि.मी. दूर था . वहां सबने भोजन किया . फिर चल पड़े काठमांडू की ओर .
लगभग शाम 5 बजे थाकरे नामक छोटी सी जगह में चाय पीने के लिए रुके . यहाँ पर दो छोटे छोटे चाय के दूकान थे . दूकानों में चाय नाश्ते के आलावा शराब की बोतलें भी सजी थी . हम तो आश्चर्य में पड़ गए . वहां पर दो स्थानीय व्यक्ति मिले जिनसे काफी देर तक हिंदी में बातचीत हुई , एक ने अपना नाम बद्रीप्रसाद अधिकारी तो दूसरे ने चिंतामणि नेवपाने बताया . दोनों से खेतीबाड़ी , रहन-सहन , शिक्षा-दीक्षा से लेकर पंचायत प्रणाली पर खूब देर तक चर्चा हुई .
काठमांडू से प्लेन द्वारा एवरेस्ट घूमने की व्यवस्था है . अतः 12 जुलाई को एवरेस्ट जाने का प्रोग्राम बना . प्लेन 17 सीटर थी सो उतने ही प्रतिनिधियों की बुकिंग हो गई . सुबह 6 बजे निकलना था सो चार बजे नींद खुल गई . होटल की खिड़की से झाँका तो देखा कि सामने पहाड़ का कुछ हिस्सा बादलों से ढका हुआ है . मैंने कैमरा निकाल कर उस दृश्य को कैमरे में कैद कर लिया . सुबह सुबह भौर में काठमांडू शहर , पहाड़ ,बादल व आसमान का दृश्य देखते ही बन रहा था . आधे घंटे बाद नजारा कुछ बदला हुआ था अतः पुनः तस्वीर ली , जैसे जैसे वक्त गुजर रहा था तथा जैसे जैसे उषाकिरण की रोशनी धरती पर पड़ रही थी वैसे वैसे नई तस्वीर बनाती जा रही थी . जल्दी जाने की आपाधापी में भी हमने कुछ तस्वीरे ली और जैसे तैसे तैयार हुए .
एवरेस्ट यानी सागरमाथा हिमालय की सबसे ऊँची चोटी है . नेपाल - चीन सीमा पर स्थित इस चोटी की ऊंचाई 8848 मीटर यानी 29029 फीट है .हिमालय को प्राचीन काल में स्वर्ग भूमि कहा जाता था . माना जाता है कि महाराजा इन्द्र भी इसी हिमालय के भू-भाग में निवास करते थे . भगवान शिव के जीवन के अनेक वृतांत इसी स्वर्ग भूमि हिमालय के साथ जुड़े हैं.गांडीवधारी अर्जुन का इसी हिमालय से विशेष लगाव था . वास्तव में हिमालय ऋषियों-मुनियों व राजाओं की जन्म एवं कर्म भूमि रही है . अंग्रेजों ने ना जाने कब इस स्वर्ग रूपी सागरमाथा का नाम बदल कर Mt. Averest कर दिया .
जीवन का अत्यंत ही अदभूत छन था जब हम हिमालय के सर्वोच्च शिखर को अपनी आँखों से निहार रहे थे . सहसा विश्वास भी नहीं होता था कि हम प्रकृति के इस अनुपम उपहार को अपनी आँखों से देख रहे है . सुबह के करीब 8 बजे थे , हिमालय की गोद पूरी तरह बर्फ से आच्छादित है . सूरज की चमकीली किरणें हिमालय की वादियों में आनंद बिखेर रहीं है . हम सब दुविधा में थे कि इस दृश्य को जी भर कर देंखें या कैमरे में कैद करें . इस अदभूत नज़ारे को देखने और कैमरे में कैद करने के लिए इस सीट से उस सीट में भागने लगे . एक अवसर ऐसा आया जब हम पायलट की सीट के पास पहुँच गए और वही से 4-6 शाट लिया . केवल 45 मिनट का वक्त था अतः पल पल कीमती था . पायलट ने बताया कि ये एवरेस्ट है , ये गौरीशंकर है ये मकालू है आदि आदि .हमारा हवाई जहाज चोटी ठीक ऊपर विचरण कर रहा था , मन करता था कि एवरेस्ट को छू लें .सर्वाधिक श्रद्धा का केंद्र था गौरीशंकर एयर होस्टेज ने बारी बारी से सबको गौरीशंकर दिखाया , एक सहयात्री ने गौरीशंकर की तस्वीर ली तो उसमें चोटी के साथ ॐ ऊभर आया .
एवरेस्ट यानी सागरमाथा का दर्शन कर हमने एक व्यक्ति से फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल ( FOOD CORPORETION OF NEPAL ) का पता और फोन नंबर लिया तथा एक टेक्सी लेकर थापाथाली स्थित गोडाऊन देखने निकल पड़े . सुबह के 11 बज चुके थे तथा 2 बजे दिल्ली की फ्लाईट पकड़नी थी अतः हमें दोपहर 1 बजे के पहले एयरपोर्ट पहुंचना था , फिर भी हम गोदाम देखने का मोह नहीं त्याग सके. थापाथाली के गोदाम में हमें श्री दिल्लीराम लम्साल जी मिले .उन्होंने अपना परिचय अंचल प्रमुख के रूप में दिया . उन्हें हमारे आने की जानकारी उनके भद्राकाली हेड ऑफिस से पहले ही मिल चुकी थी . हमने अपना परिचय देकर अपने आने का प्रयोजन बताया . वे खुशी खुशी हमें गोदाम की ओर ले गए . हमने वहां लगभग डेढ़ घंटे बिताये . श्री लम्साल ने बताया कि नेपाल खाद्य संस्थान ( FCN ) के गोदामों में चांवल,आटा,मैदा,तेल,उड़द,मक्का आदि भण्डारण किया जाता है . पूरे नेपाल में FCN की भण्डारण क्षमता मात्र 1 लाख मेट्रिक टन है जो कि बहुत ही कम है . हमने उन्हें बताया कि छत्तीसगढ़ की आबादी नेपाल से कम है लेकिन छत्तीसगढ़ में हमारे गोदामों की भण्डारण क्षमता लगभग 6 लाख में.ट. है , अभी 8 लाख में.ट. के गोदाम निर्माणाधीन हैं . चांवल की उत्पादन के संबंध में जानकारी मांगने पर उन्होंने बताया कि नेपाल में खपत के मुकाबले उत्पादन कम होता है , भारत और जापान से हमें मदद मिलती रहती है . FCN के गोदामों में 10 किलो और 25 किलो के पैकेट में खाद्यान भंडारित किया जाता है . खाद्यान की खरीदी व प्रसंसकरण का कार्य स्वयं FCN करती है तथा स्वयं के साधनों सेपरिवाहन कर भंडारित करती है , नेपाल में आम उपभोक्ता सीधे गोदाम में आकर मॉल खरीदते है . पहले उन्हें दफ्तर में वांछित राशी जमा कर कूपन लेना होता है , कूपन के आधार पर गोदाम कीपर ग्राहकों को मॉल प्रदान करता है .
एवरेस्ट यानी सागरमाथा का दर्शन कर हमने एक व्यक्ति से फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल ( FOOD CORPORETION OF NEPAL ) का पता और फोन नंबर लिया तथा एक टेक्सी लेकर थापाथाली स्थित गोडाऊन देखने निकल पड़े . सुबह के 11 बज चुके थे तथा 2 बजे दिल्ली की फ्लाईट पकड़नी थी अतः हमें दोपहर 1 बजे के पहले एयरपोर्ट पहुंचना था , फिर भी हम गोदाम देखने का मोह नहीं त्याग सके. थापाथाली के गोदाम में हमें श्री दिल्लीराम लम्साल जी मिले .उन्होंने अपना परिचय अंचल प्रमुख के रूप में दिया . उन्हें हमारे आने की जानकारी उनके भद्राकाली हेड ऑफिस से पहले ही मिल चुकी थी . हमने अपना परिचय देकर अपने आने का प्रयोजन बताया . वे खुशी खुशी हमें गोदाम की ओर ले गए . हमने वहां लगभग डेढ़ घंटे बिताये . श्री लम्साल ने बताया कि नेपाल खाद्य संस्थान ( FCN ) के गोदामों में चांवल,आटा,मैदा,तेल,उड़द,मक्का आदि भण्डारण किया जाता है . पूरे नेपाल में FCN की भण्डारण क्षमता मात्र 1 लाख मेट्रिक टन है जो कि बहुत ही कम है . हमने उन्हें बताया कि छत्तीसगढ़ की आबादी नेपाल से कम है लेकिन छत्तीसगढ़ में हमारे गोदामों की भण्डारण क्षमता लगभग 6 लाख में.ट. है , अभी 8 लाख में.ट. के गोदाम निर्माणाधीन हैं . चांवल की उत्पादन के संबंध में जानकारी मांगने पर उन्होंने बताया कि नेपाल में खपत के मुकाबले उत्पादन कम होता है , भारत और जापान से हमें मदद मिलती रहती है . FCN के गोदामों में 10 किलो और 25 किलो के पैकेट में खाद्यान भंडारित किया जाता है . खाद्यान की खरीदी व प्रसंसकरण का कार्य स्वयं FCN करती है तथा स्वयं के साधनों सेपरिवाहन कर भंडारित करती है , नेपाल में आम उपभोक्ता सीधे गोदाम में आकर मॉल खरीदते है . पहले उन्हें दफ्तर में वांछित राशी जमा कर कूपन लेना होता है , कूपन के आधार पर गोदाम कीपर ग्राहकों को मॉल प्रदान करता है .
नेपाल में पर्याप्त मात्र में गोदाम नहीं है तथा जो गोदाम अभी है उनकी हालत भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती . पुराने डिज़ाईन के गोदाम थे ,भण्डारण का तरीका भी पुराना है . लेकिन खाद्यान के पैकेट बड़ी सावधानी से जमाये गए थे , हमें एक भी फूटा हुआ पैकेट नहीं दिखा . गोदामों का अवलोकन कर हम लोग दफ्तर पहुंचे जहाँ सब कर्मचारी अपने अपने काम में मशगूल थे , अंचल प्रमुख के कक्ष में बैठ कर और भी बातों की जानकारी ली तथा चाय पीकर हम एयर पोर्ट की ओर निकल पड़े . रास्ते में एक आयुर्वेदिक डाक्टर के पास रुके तथा एलर्जी की दवाइयों के बारे में पूछताछ कर आगे बढ़ गए .
नेपाल की यात्रा पूरी हो चुकी थी , अब हमें सीधे फ्लाईट पकड़ना था . काठमांडू से दोपहर 2.10 बजे नई दिल्ली के लिए जेट एयरवेज की फ्लाईट थी . हमारे बाकी साथी भी एयरपोर्ट में पहुँच चुके थे . वे सीधे एवरेस्ट होटल से भोजन का पैकेट लेकर चले थे जबकि मै और श्री मिथिलेश दुबे फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम से आ रहे थे . खाना हम दोनों ने नहीं किया था , अतः बिना भोजन किये प्लेन में बैठ गए . भोजन के संबंध में ना हमसे किसी ने पूछा ना ही हमने किसी से जिक्र किया . हमें भूख के बजाय स्वदेश लौटने की जिज्ञाषा ज्यादा थी . प्लेन में हम समय पर बैठ गए थे , प्लेन उड़ान भरने के लिए तैयार थी लेकिन लाइन क्लीयर ना होने की वजह से प्लेन एक घंटे विलंब से चली . नई दिल्ली से रायपुर के लिए हमारा फ्लाईट शाम 6.05 बजे था अतः हमें अगली फ्लाईट मिस होने का खतरा सताने लगा . खैर लगभग 3.20 बजे हमारी प्लेन ने काठमांडू से उड़ान भरी . नेपाल यात्रा की अनेक मधुर स्मृतियों को लिए हमने नेपाल की धरती से आकाश की उचाईयों में पहुचे . हम सब की सीटें लगभग आसपास थी , बिदाई की बेला में किसी की आवाज नहीं निकल रही थी . सबके चहरे पर स्वदेश जाने की ख़ुशी और बिछड़ने का गम साफ झलक रहा था . इस बीच नागपुर के श्री सुरेण दुरागकर ने मुझे हाँथ पकड़ कर उठाते हुए कहा की आइये आपकी डिमांड हो रही है . मै उठकर पीछे की ओर पंहुंचा तो मुझे बताया गया कि आपने मनकामना यात्रा के दौरान पहेली बूझी थी उसका प्राइज देना बाकी है . दरअसल मनकामना यात्रा में जाते समय श्रीमती ज्योति चिटनिस ने एक पहेली पूछी तथा सही उत्तर बताने वाले को ईनाम देने की घोषणा की . रास्ते भर में कई बार सवाल दुहराया गया लेकिन कोई भी सही उत्तर नहीं बता पाया . वापस लौटते समय भी इस पहेली को कोई बूझ नहीं पा रहा था आख़िरकार हमारा तीर में तुक्का चल गया . अतः मुझे ज्योति जी ने कपड़े की छोटी सी थैली में प्राइज प्रदान किया तो सबने तालियाँ बजाई और प्राइज को खोल कर दिखाने का आग्रह किया . मैंने पोटली खोली तो उसमें से लाफिंग बुद्धा की मूर्ति निकली . सबने मुझे बधाई देते हुए कहा कि यह लाफिंग बुद्धा बड़ा लाभदायी है , जब कोई अन्य व्यक्ति से मिले तो यह और ज्यादा लाभकारी हो जाता है . हमने खुशी खुशी उसे जाकेट की जेब में डाल लिया और यह कहते हुए कि फ्लाईट लेट है , इस प्लेन से उतरने के बाद दिल्ली से रायपुर की फ्लाईट दौड़ के पकड़नी पड़ेगी , सबको नमस्ते किया और क्षमा याचना कर अपनी सीट की ओर लौटने लगा .
इस बीच सूचना दी गई कि कुछ ही देर में हम नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में लैंड करने जा रहे है अतः सभी यात्री अपनी सीट पर लौट आये तथा कुर्सी की पेटी बांध लें . मै अपनी सीट के बजाय आगे गेट के पास खाली सीट में आकर बैठ गया . लगभग शाम 4.45 बजे दिल्ली हवाई अड्डे में लैंड किया . रायपुर की फ्लाईट 6.20 बजे थी , पूरा विश्वास था कि हमें अगली फ्लाईट मिल जायेगी . लेकिन आधे घंटे के इंतजार के बाद गेट खुला . दौड़ कर लगेज के लिए गए , यहाँ भी विलंब किया गया . अंततः शाम 5.40 बजे हम बोर्डिंग के लिए काउंटर पर पहुंचे तो बोर्डिंग क्लोज हो गया था . कारण बताने पर कुछ अतिरिक्त चार्ज लेकर दूसरे दिन की टिकिट देने के लिए राजी हुए , अतः हम दूसरे दिन यानी 13 जुलाई की टिकिट लेकर छत्तीसगढ़ भवन आ गए . मेरे साथ श्री मिथिलेश दुबे भी थे . दिनभर कुछ खाए नहीं थे अतः आते ही भोजन का आर्डर दिया और भोजन कर जल्दी सो गए .पिछले कई दिनों की थकान थी इसीलिये सुबह आराम से 9 बजे उठे . हमारी फ्लाईट शाम को 6.20 बजे थी अतः आज 4 बजे ही एयरपोर्ट पहुँच गए थे . ठीक 7.55 बजे हमने रायपुर की धरती पर कदम रखा . इस प्रकार अनेक खट्टे-मीठे अनुभव के साथ हमारी पहली विदेश यात्रा पूरी हुई . (समाप्त)
इस लेख को आप हरिभूमि रायपुर के दिनांक 9 अगस्त 2011 के पेज - 3 तथा प्रवक्ता.काम में भी पढ़ सकते है .दैनिक प्रतिदिन रायपुर एवं ग्राम चौपाल का भी आभार .
ज्योति जी ने कपड़े की छोटी सी थैली में प्राइज प्रदान किया |
यही है वह लाफिंग बुद्धा जो हमें ईनाम में मिला |
नेपाल की यात्रा पूरी हो चुकी थी , अब हमें सीधे फ्लाईट पकड़ना था . काठमांडू से दोपहर 2.10 बजे नई दिल्ली के लिए जेट एयरवेज की फ्लाईट थी . हमारे बाकी साथी भी एयरपोर्ट में पहुँच चुके थे . वे सीधे एवरेस्ट होटल से भोजन का पैकेट लेकर चले थे जबकि मै और श्री मिथिलेश दुबे फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम से आ रहे थे . खाना हम दोनों ने नहीं किया था , अतः बिना भोजन किये प्लेन में बैठ गए . भोजन के संबंध में ना हमसे किसी ने पूछा ना ही हमने किसी से जिक्र किया . हमें भूख के बजाय स्वदेश लौटने की जिज्ञाषा ज्यादा थी . प्लेन में हम समय पर बैठ गए थे , प्लेन उड़ान भरने के लिए तैयार थी लेकिन लाइन क्लीयर ना होने की वजह से प्लेन एक घंटे विलंब से चली . नई दिल्ली से रायपुर के लिए हमारा फ्लाईट शाम 6.05 बजे था अतः हमें अगली फ्लाईट मिस होने का खतरा सताने लगा . खैर लगभग 3.20 बजे हमारी प्लेन ने काठमांडू से उड़ान भरी . नेपाल यात्रा की अनेक मधुर स्मृतियों को लिए हमने नेपाल की धरती से आकाश की उचाईयों में पहुचे . हम सब की सीटें लगभग आसपास थी , बिदाई की बेला में किसी की आवाज नहीं निकल रही थी . सबके चहरे पर स्वदेश जाने की ख़ुशी और बिछड़ने का गम साफ झलक रहा था . इस बीच नागपुर के श्री सुरेण दुरागकर ने मुझे हाँथ पकड़ कर उठाते हुए कहा की आइये आपकी डिमांड हो रही है . मै उठकर पीछे की ओर पंहुंचा तो मुझे बताया गया कि आपने मनकामना यात्रा के दौरान पहेली बूझी थी उसका प्राइज देना बाकी है . दरअसल मनकामना यात्रा में जाते समय श्रीमती ज्योति चिटनिस ने एक पहेली पूछी तथा सही उत्तर बताने वाले को ईनाम देने की घोषणा की . रास्ते भर में कई बार सवाल दुहराया गया लेकिन कोई भी सही उत्तर नहीं बता पाया . वापस लौटते समय भी इस पहेली को कोई बूझ नहीं पा रहा था आख़िरकार हमारा तीर में तुक्का चल गया . अतः मुझे ज्योति जी ने कपड़े की छोटी सी थैली में प्राइज प्रदान किया तो सबने तालियाँ बजाई और प्राइज को खोल कर दिखाने का आग्रह किया . मैंने पोटली खोली तो उसमें से लाफिंग बुद्धा की मूर्ति निकली . सबने मुझे बधाई देते हुए कहा कि यह लाफिंग बुद्धा बड़ा लाभदायी है , जब कोई अन्य व्यक्ति से मिले तो यह और ज्यादा लाभकारी हो जाता है . हमने खुशी खुशी उसे जाकेट की जेब में डाल लिया और यह कहते हुए कि फ्लाईट लेट है , इस प्लेन से उतरने के बाद दिल्ली से रायपुर की फ्लाईट दौड़ के पकड़नी पड़ेगी , सबको नमस्ते किया और क्षमा याचना कर अपनी सीट की ओर लौटने लगा .
इस बीच सूचना दी गई कि कुछ ही देर में हम नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में लैंड करने जा रहे है अतः सभी यात्री अपनी सीट पर लौट आये तथा कुर्सी की पेटी बांध लें . मै अपनी सीट के बजाय आगे गेट के पास खाली सीट में आकर बैठ गया . लगभग शाम 4.45 बजे दिल्ली हवाई अड्डे में लैंड किया . रायपुर की फ्लाईट 6.20 बजे थी , पूरा विश्वास था कि हमें अगली फ्लाईट मिल जायेगी . लेकिन आधे घंटे के इंतजार के बाद गेट खुला . दौड़ कर लगेज के लिए गए , यहाँ भी विलंब किया गया . अंततः शाम 5.40 बजे हम बोर्डिंग के लिए काउंटर पर पहुंचे तो बोर्डिंग क्लोज हो गया था . कारण बताने पर कुछ अतिरिक्त चार्ज लेकर दूसरे दिन की टिकिट देने के लिए राजी हुए , अतः हम दूसरे दिन यानी 13 जुलाई की टिकिट लेकर छत्तीसगढ़ भवन आ गए . मेरे साथ श्री मिथिलेश दुबे भी थे . दिनभर कुछ खाए नहीं थे अतः आते ही भोजन का आर्डर दिया और भोजन कर जल्दी सो गए .पिछले कई दिनों की थकान थी इसीलिये सुबह आराम से 9 बजे उठे . हमारी फ्लाईट शाम को 6.20 बजे थी अतः आज 4 बजे ही एयरपोर्ट पहुँच गए थे . ठीक 7.55 बजे हमने रायपुर की धरती पर कदम रखा . इस प्रकार अनेक खट्टे-मीठे अनुभव के साथ हमारी पहली विदेश यात्रा पूरी हुई . (समाप्त)
धन्यवाद !
इस लेख को आप हरिभूमि रायपुर के दिनांक 9 अगस्त 2011 के पेज - 3 तथा प्रवक्ता.काम में भी पढ़ सकते है .दैनिक प्रतिदिन रायपुर एवं ग्राम चौपाल का भी आभार .
आपके द्वारा 09 किश्तों में प्रस्तुत सचित्र नेपाल दर्शन पढ़कर जहॉं एक ओर नोपल की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, प्राकृतिक, रहन-सहन, वेशभूषा, भाषा-बोली का ज्ञान प्राप्त हुआ, वहीं दूसरी ओर नेपाल में स्थित विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल, हिमालय पर्वत (माउंट एवरेस्ट चोटी), पशुपतिनाथ मंदिर, मनकामना मंदिर, राजमहल आदि के बारे में सचित्र जानकारी प्राप्त हुई। बहुत अच्छा यात्रा संस्मरण................!
जवाब देंहटाएंNepal yaatra ka sajeev prastutikaran ke liye aabhar!
जवाब देंहटाएंisi bahane ham bhi yaatra mein shamil ho chale..
Haardik shubhkamnayen!
लेख विस्तृत है इसे किसी तरह एक पन्ने में भी ला सकें तो अधिक पठनीय होगा। वैसे लेख पढ़कर गर्व होता है..
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